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दो मुक्तक

चलते रहना बहुत ज़रूरी है, दिल की कहना बहुत ज़रूरी है, देखो, सागर बनेंगे ये आंसू, इनका बहना बहुत ज़रूरी है। शहर आँखों में समेटे जा रहे हैं, स्वार्थ की परतें लपेटे जा रहे हैं, छोड़कर माँ-बाप बूढ़े, कोठरी में, बीवियों के संग बेटे जा रहे हैं.

प्यार के दोहे

प्यार युद्ध, हिंसा नहीं, प्यार नहीं हथियार, प्यार के आगे झुक गईं, कितनी ही सरकार। प्यार कृष्ण का रूप है, जिसे भजें रसखान, प्यार जिसे मिल जाये वो, बन जाये इंसान। प्यार हृदय की पीर है, प्यार नयन का नीर, ढाई आखर प्यार है, कह गए संत कबीर। प्यार न समझे छल-कपट, चोरी, झूठ या लूट, प्यार पवित्र रिश्ता अमर, जिसकी डोर अटूट। प्यार में ओझल चेतना, प्यार में गायब चैन, प्यार अश्रु अविरल-विकल, जिसमें भीगें नैन।

मुक्तक

यूँ भी हुए तमाशे सौ। पाया एक, तलाशे सौ। जब भी उसका नाम लिया, मुंह में घुले बताशे सौ। यूँ समझो था ख्वाब सुनहरा याद रहा। मुझे सफ़र में तेरा चेहरा याद रहा। कैसे कह दूँ तेरी याद नहीं आई, रस्ते भर खुशबु का पहरा याद रहा.

ग़ज़ल

जीवन मेरा, प्यार तुम्हारा, मुझपर है अधिकार तुम्हारा। बस, अब तो हो जाओ राज़ी, वो मेरा, संसार तुम्हारा। मैं तो सच की राह चलूँगा, झूठ भरा घर-बार तुम्हारा। सुख दो, दुख दो, सब सर माथे, जो कुछ है, स्वीकार तुम्हारा। क्यों काँटों जैसा लगता है, मुझपर हर उपकार तुम्हारा। ठेठ निकम्मे हो, फिर कैसे- सपना हो साकार तुम्हारा। मां मैं कब से सोच रहा हूँ, कैसे उतरे भार तुम्हारा।

अगर चिराग है तो जल......

अगर चिराग है तो जल तू आँधियों के सामने अगर हँसी है तो हरेक लबके हाथ थाम ले। अगर है होंसला तो हर कदम-कदम के साथ चल, रुकावटें करेंगी क्या अगर इरादे हैं अटल, जिधर-जिधर मुड़ेगा तू, उधर मुडेंगे रास्ते। अगर चिराग है तो जल तू आँधियों के सामने। अगर तू कान है तो दर्द सुन यहाँ हरेक का, अगर तू आँख है तो दिक्क़तों का कर मुआयना, अगर ज़बान है तो सामने जहाँ के बोल दे। अगर चिराग है तो जल तू आँधियों के सामने। अगर नसीब है तो फिर तू मुफलिसी का साथ दे, यकीन है अगर कहीं तो आदमी का साथ दे, अगर तू दायरा है तो पतन के पाँव रोक दे। अगर चिराग है तो जल तू आँधियों के सामने।

सोच लिया तो सोच लिया

जीवन खुशियों से भर दूंगा, सोच लिया तो सोच लिया। चिंताओं पर फतह करूंगा, सोच लिया तो सोच लिया। जीवन से बढ़कर समाज है और समाज से ऊपर देश, देश की खातिर जां दे दूंगा, सोच लिया तो सोच लिया। कितनी भी बाधाएं आएं, भारी संकट हों सर पर, तुमको चाहा है, चाहूँगा, सोच लिया तो सोच लिया। उसके सच को वज़न मिले तो, आखिर मैंने सोचा है, दर्पण को चेहरा दे दूंगा, सोच लिया तो सोच लिया। खूब खताएं की हैं मैंने, पश्चाताप करूँ कैसे, माँ के आगे सर रख दूंगा, सोच लिया तो सोच लिया। बच्चों की गुल्लक के पैसे लेकर राशन ले आया, आगे ठीकठाक कर लूँगा, सोच लिया तो सोच लिया. हंसी नहीं ला पाऊँ शायद उनके होठों पे "चेतन " कम से कम, ग़म कम कर दूंगा, सोच लिया तो सोच लिया.