यूँ भी हुए तमाशे सौ। पाया एक, तलाशे सौ। जब भी उसका नाम लिया, मुंह में घुले बताशे सौ। यूँ समझो था ख्वाब सुनहरा याद रहा। मुझे सफ़र में तेरा चेहरा याद रहा। कैसे कह दूँ तेरी याद नहीं आई, रस्ते भर खुशबु का पहरा याद रहा.
अब इनकी किस्मत है चाहे जितनी दूर तलक जाएँ, मैंने कोरे कागज़ पर अल्फाज़ के पंछी छोड़े हैं।