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ग़ज़ल

ऐसा भी कोई तौर तरीका निकालिये। अहसास को अल्फाज़ के सांचे में ढालिये।। जलता रहे जो रोज़ ही नफ़रत की आग में, ऐसा दिलो दिमाग़ में रिश्ता न पालिये।। दीवार रच रही है बांटने की साजिशें, उठिये कि घर संभालिये, आंगन संभालिये।। सोया है गहरी नींद में बहरा ये आसमां, तो चीखिये, आवाज़ के पत्थर उछालिये।। फाक़ाकशी में भूख लगी तो यही किया, हमने ये अश्क पी लिये, ये ग़म ही खा लिये।। - चेतन आनंद