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संदेश

गंगा पर दस दोहे त्रिदेवों की लाडली, हिम शिखरों की शान। आज धरा से माँगती, जीने का वरदान।1। सिसक-सिसककर कर रही, गंगा यही पुकार। मानव तेरी मातु मैं, मुझे न ऐसे मार।2। देखो जीवन-दायिनी, माँ गंगा बीमार। साँस न टूटे इसलिये, शीघ्र करो उपचार।3। याद रखो कर्तव्य तुम, मत भूलो उपकार। माँ गंगा से हैं जुड़े, इस जीवन के तार।4। रात कहे इंसान से, याद कराये भोर। गंगा को निर्मल बना, मत बन अधिक कठोर।5। गंगाजल से देह है, गंगाजल से प्राण। गंगाजल के मेल से, देव बने पाषाण।6। बूंद-बूंद भूगोल है, लहर-लहर इतिहास। माँ गंगा की गोद में, छिपे कई मधुमास।7। माँ गंगा से ही मिले, भारत को पहचान। गंगा की पाकर कृपा, देव बने इंसान।8। मानो अब प्रत्यक्ष तुम, या फिर इसे परोक्ष। गंगा से जीवन मिले, गंगा से ही मोक्ष।9। गंगाजल से कर तिलक, यह निर्मलतम इत्र। जिस घर गंगाजल रहे, वह घर बने पवित्र।10। -चेतन आनंद
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ग़ज़ल

ऐसा भी कोई तौर तरीका निकालिये। अहसास को अल्फाज़ के सांचे में ढालिये।। जलता रहे जो रोज़ ही नफ़रत की आग में, ऐसा दिलो दिमाग़ में रिश्ता न पालिये।। दीवार रच रही है बांटने की साजिशें, उठिये कि घर संभालिये, आंगन संभालिये।। सोया है गहरी नींद में बहरा ये आसमां, तो चीखिये, आवाज़ के पत्थर उछालिये।। फाक़ाकशी में भूख लगी तो यही किया, हमने ये अश्क पी लिये, ये ग़म ही खा लिये।। - चेतन आनंद
ज़ुबाँ से बोलेगा या फिर नज़र से बोलेगा मेरा वजूद तो मेरे हुनर से बोलेगा क़लम क़लम है क़लम की ज़ुबाँ नहीं होती क़लम का दर्द तुम्हारी खबर से बोलेगा। चेतन आनंद   

दो मुक्तक

चलते रहना बहुत ज़रूरी है, दिल की कहना बहुत ज़रूरी है, देखो, सागर बनेंगे ये आंसू, इनका बहना बहुत ज़रूरी है। शहर आँखों में समेटे जा रहे हैं, स्वार्थ की परतें लपेटे जा रहे हैं, छोड़कर माँ-बाप बूढ़े, कोठरी में, बीवियों के संग बेटे जा रहे हैं.

प्यार के दोहे

प्यार युद्ध, हिंसा नहीं, प्यार नहीं हथियार, प्यार के आगे झुक गईं, कितनी ही सरकार। प्यार कृष्ण का रूप है, जिसे भजें रसखान, प्यार जिसे मिल जाये वो, बन जाये इंसान। प्यार हृदय की पीर है, प्यार नयन का नीर, ढाई आखर प्यार है, कह गए संत कबीर। प्यार न समझे छल-कपट, चोरी, झूठ या लूट, प्यार पवित्र रिश्ता अमर, जिसकी डोर अटूट। प्यार में ओझल चेतना, प्यार में गायब चैन, प्यार अश्रु अविरल-विकल, जिसमें भीगें नैन।

मुक्तक

यूँ भी हुए तमाशे सौ। पाया एक, तलाशे सौ। जब भी उसका नाम लिया, मुंह में घुले बताशे सौ। यूँ समझो था ख्वाब सुनहरा याद रहा। मुझे सफ़र में तेरा चेहरा याद रहा। कैसे कह दूँ तेरी याद नहीं आई, रस्ते भर खुशबु का पहरा याद रहा.

ग़ज़ल

जीवन मेरा, प्यार तुम्हारा, मुझपर है अधिकार तुम्हारा। बस, अब तो हो जाओ राज़ी, वो मेरा, संसार तुम्हारा। मैं तो सच की राह चलूँगा, झूठ भरा घर-बार तुम्हारा। सुख दो, दुख दो, सब सर माथे, जो कुछ है, स्वीकार तुम्हारा। क्यों काँटों जैसा लगता है, मुझपर हर उपकार तुम्हारा। ठेठ निकम्मे हो, फिर कैसे- सपना हो साकार तुम्हारा। मां मैं कब से सोच रहा हूँ, कैसे उतरे भार तुम्हारा।