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मुक्तक

यूँ भी हुए तमाशे सौ।
पाया एक, तलाशे सौ।
जब भी उसका नाम लिया,
मुंह में घुले बताशे सौ।

यूँ समझो था ख्वाब सुनहरा याद रहा।
मुझे सफ़र में तेरा चेहरा याद रहा।
कैसे कह दूँ तेरी याद नहीं आई,
रस्ते भर खुशबु का पहरा याद रहा.

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प्यार के दोहे

प्यार युद्ध, हिंसा नहीं, प्यार नहीं हथियार, प्यार के आगे झुक गईं, कितनी ही सरकार। प्यार कृष्ण का रूप है, जिसे भजें रसखान, प्यार जिसे मिल जाये वो, बन जाये इंसान। प्यार हृदय की पीर है, प्यार नयन का नीर, ढाई आखर प्यार है, कह गए संत कबीर। प्यार न समझे छल-कपट, चोरी, झूठ या लूट, प्यार पवित्र रिश्ता अमर, जिसकी डोर अटूट। प्यार में ओझल चेतना, प्यार में गायब चैन, प्यार अश्रु अविरल-विकल, जिसमें भीगें नैन।

ग़ज़ल- 3

अक्सर तेरे ख्याल से बाहर नहीं हुआ शायद यही सबब था मैं पत्थर नहीं हुआ। महका चमन था, पेड़ थे, कलियाँ थे, फूल थे, तुम थे नहीं तो पूरा भी मंज़र नहीं हुआ। माना मेरा वजूद नदी के समान है, लेकिन नदी बगैर समंदर नहीं हुआ। जिस दिन से उसे दिल से भुलाने की ठान ली, उस दिन से कोई काम भी बेहतर नहीं हुआ। साए मैं किसी और के इतना भी न रहो, अंकुर कोई बरगद के बराबर नहीं हुआ।
गंगा पर दस दोहे त्रिदेवों की लाडली, हिम शिखरों की शान। आज धरा से माँगती, जीने का वरदान।1। सिसक-सिसककर कर रही, गंगा यही पुकार। मानव तेरी मातु मैं, मुझे न ऐसे मार।2। देखो जीवन-दायिनी, माँ गंगा बीमार। साँस न टूटे इसलिये, शीघ्र करो उपचार।3। याद रखो कर्तव्य तुम, मत भूलो उपकार। माँ गंगा से हैं जुड़े, इस जीवन के तार।4। रात कहे इंसान से, याद कराये भोर। गंगा को निर्मल बना, मत बन अधिक कठोर।5। गंगाजल से देह है, गंगाजल से प्राण। गंगाजल के मेल से, देव बने पाषाण।6। बूंद-बूंद भूगोल है, लहर-लहर इतिहास। माँ गंगा की गोद में, छिपे कई मधुमास।7। माँ गंगा से ही मिले, भारत को पहचान। गंगा की पाकर कृपा, देव बने इंसान।8। मानो अब प्रत्यक्ष तुम, या फिर इसे परोक्ष। गंगा से जीवन मिले, गंगा से ही मोक्ष।9। गंगाजल से कर तिलक, यह निर्मलतम इत्र। जिस घर गंगाजल रहे, वह घर बने पवित्र।10। -चेतन आनंद