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ग़ज़ल- 3

अक्सर तेरे ख्याल से बाहर नहीं हुआ
शायद यही सबब था मैं पत्थर नहीं हुआ।

महका चमन था, पेड़ थे, कलियाँ थे, फूल थे,
तुम थे नहीं तो पूरा भी मंज़र नहीं हुआ।

माना मेरा वजूद नदी के समान है,
लेकिन नदी बगैर समंदर नहीं हुआ।

जिस दिन से उसे दिल से भुलाने की ठान ली,
उस दिन से कोई काम भी बेहतर नहीं हुआ।

साए मैं किसी और के इतना भी न रहो,
अंकुर कोई बरगद के बराबर नहीं हुआ।

टिप्पणियाँ

  1. आपका स्वागत है ब्लॉग जगत में ,और आपके निरंतर लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ........

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  2. साए मैं किसी और के इतना भी न रहो,
    अंकुर कोई बरगद के बराबर नहीं हुआ।

    भावनाओं की सुंदर प्रस्तुति. स्वागत.

    जवाब देंहटाएं
  3. ब्लोगिंग जगत में स्वागत है
    सुन्दर रचना के लिए शुभकामनाएं
    भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
    लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
    कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
    मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
    www.zindagilive08.blogspot.com
    आर्ट के लि‌ए देखें
    www.chitrasansar.blogspot.com

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  4. aapki gajal padkar to vastav me aanand ki abhibhuti hui krpyaa aisaa hi likhte rahiye taaki blog jagat me aapkaa naam ho ,krpyaa mere blog ko bhi dekhne ki krpaa kare ,aapko aapki ruchi ke anusaar sab kuchh milegaa aik baar blog par jaakar to dekhiye aapkaa bahut bahut dhanyvaad

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