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मार्च, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मुक्तक

यूँ भी हुए तमाशे सौ। पाया एक, तलाशे सौ। जब भी उसका नाम लिया, मुंह में घुले बताशे सौ। यूँ समझो था ख्वाब सुनहरा याद रहा। मुझे सफ़र में तेरा चेहरा याद रहा। कैसे कह दूँ तेरी याद नहीं आई, रस्ते भर खुशबु का पहरा याद रहा.