जो जन-जन का सहगान बना, जो दुखियों की मुस्कान बना, भारत का गौरवगान बना, जो ऋषियों की संतान बना, जो सच की राह चला निर्भय, है उसी विवेकानंद की जय, मन बोल विवेकानंद की जय, युगपुरुष विवेकानंद की जय। जिसने गौरों के घर जाकर, जब बोला हेलो ब्रदर सिस्टर, तब टूटा मौन, बढ़ी हलचल, ये युवक कौन करता पागल, ये बादल नहीं, है चिंगारी, ये ऋषि सभी पर है भारी, जब शून्य विषय पर स्वर फूटे, सब ज्ञानवान पीछे छूटे, सब लोग उसी के दीवाने, उस कर्मवीर के मस्ताने, जो एक नई पहचान बना, जो संस्कृति का सम्मान बना, भारतमाता की शान बना, जो हर मन का अभिमान बना, है उसी विवेकानंद की जय, मन बोल विवेकानंद की जय, युगपुरुष विवेकानंद की जय। थे सीधे- सादे हावभाव, लेकिन अदम्य उनका प्रभाव, वह सहज, सरल, निर्मल मन का, विश्वास अटल, बहुबल तन का, वह आर्य चला था युग रचने, उसके थे नयन में कई सपने, वह सकल विश्व का संचालक, बस दीखता था चंचल बालक, उसका मकसद छा जाना था, निज देश वरिष्ठ बनाना था, जो मानवता का गीत बना, जो संस्कृति का संगीत बना, हर इक मन का मनप्रीत बना, जो सबकी निश्चित जीत बना, है उसी विवेकानंद की जय, मन बोल विवेकानंद की जय, युगपुरुष...
अब इनकी किस्मत है चाहे जितनी दूर तलक जाएँ, मैंने कोरे कागज़ पर अल्फाज़ के पंछी छोड़े हैं।