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ग़ज़ल

जीवन मेरा, प्यार तुम्हारा,
मुझपर है अधिकार तुम्हारा।

बस, अब तो हो जाओ राज़ी,
वो मेरा, संसार तुम्हारा।

मैं तो सच की राह चलूँगा,
झूठ भरा घर-बार तुम्हारा।

सुख दो, दुख दो, सब सर माथे,
जो कुछ है, स्वीकार तुम्हारा।

क्यों काँटों जैसा लगता है,
मुझपर हर उपकार तुम्हारा।

ठेठ निकम्मे हो, फिर कैसे-
सपना हो साकार तुम्हारा।

मां मैं कब से सोच रहा हूँ,
कैसे उतरे भार तुम्हारा।

टिप्पणियाँ

  1. bahut sunder bhav liye hai ye aapkee rachana....
    मां मैं कब से सोच रहा हूँ,
    कैसे उतरे भार तुम्हारा।
    ye kaam to asambhav hai.........

    जवाब देंहटाएं
  2. मतला से मकता तक एकदम ठांय गजल है पढ़ कर दिल खुश हो गया

    आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ ब्लॉग को अनुसरण कर रहा हूँ अब तो आना जाना लगा रहेगा

    गजल का मकता बहुत पसंद आया

    क्या आप तरही मुशायरे में भाग लेना चाहते है आपका स्वागत है

    इस पते पर क्लिक कर सकते हैं

    जवाब देंहटाएं
  3. सुख दो, दुख दो, सब सर माथे,
    जो कुछ है, स्वीकार तुम्हारा।

    मां मैं कब से सोच रहा हूँ,
    कैसे उतरे भार तुम्हारा।
    वाह बहुत सुन्दर । शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं

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प्यार के दोहे

प्यार युद्ध, हिंसा नहीं, प्यार नहीं हथियार, प्यार के आगे झुक गईं, कितनी ही सरकार। प्यार कृष्ण का रूप है, जिसे भजें रसखान, प्यार जिसे मिल जाये वो, बन जाये इंसान। प्यार हृदय की पीर है, प्यार नयन का नीर, ढाई आखर प्यार है, कह गए संत कबीर। प्यार न समझे छल-कपट, चोरी, झूठ या लूट, प्यार पवित्र रिश्ता अमर, जिसकी डोर अटूट। प्यार में ओझल चेतना, प्यार में गायब चैन, प्यार अश्रु अविरल-विकल, जिसमें भीगें नैन।

दो मुक्तक

चलते रहना बहुत ज़रूरी है, दिल की कहना बहुत ज़रूरी है, देखो, सागर बनेंगे ये आंसू, इनका बहना बहुत ज़रूरी है। शहर आँखों में समेटे जा रहे हैं, स्वार्थ की परतें लपेटे जा रहे हैं, छोड़कर माँ-बाप बूढ़े, कोठरी में, बीवियों के संग बेटे जा रहे हैं.

मुक्तक

यूँ भी हुए तमाशे सौ। पाया एक, तलाशे सौ। जब भी उसका नाम लिया, मुंह में घुले बताशे सौ। यूँ समझो था ख्वाब सुनहरा याद रहा। मुझे सफ़र में तेरा चेहरा याद रहा। कैसे कह दूँ तेरी याद नहीं आई, रस्ते भर खुशबु का पहरा याद रहा.