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ग़ज़ल

लिख नहीं पाए बहुत ज़्यादा मगर कुछ तो लिखा
प्यार की दीवार पे ग़म का असर कुछ तो लिखा.

मन की उलझन, तन की चिंता, काम से भारी थकन,
जिंदगी के फलसफे पर रातभर कुछ तो लिखा।

ये चलो माना कि हम आगाज़ पे चुप रह गए,
जिंदगी लेकिन तेरे अंजाम पर कुछ तो लिखा।

पढ़ नहीं पाया हमारे दिल को वो तो क्या हुआ,
चूमकर उसने हमारे गाल पर कुछ तो लिखा।

छोड़िये किस्मत में उसने क्या लिखा, क्या न लिखा,
चिलचिलाती धूप में लंबा सफर कुछ तो लिखा।

टिप्पणियाँ

  1. चेतन जी,
    आपको पिछले कई दिनो से अपनी के ज़रिए पढ़ रहा हूँ ... हर रचना को एक से बढ़कर एक पाया है ...
    हर ग़ज़ल दिल को छूती है.. हर शेर दिल तक पहुँचता है ...
    साधुवाद

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प्यार के दोहे

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ग़ज़ल- 3

अक्सर तेरे ख्याल से बाहर नहीं हुआ शायद यही सबब था मैं पत्थर नहीं हुआ। महका चमन था, पेड़ थे, कलियाँ थे, फूल थे, तुम थे नहीं तो पूरा भी मंज़र नहीं हुआ। माना मेरा वजूद नदी के समान है, लेकिन नदी बगैर समंदर नहीं हुआ। जिस दिन से उसे दिल से भुलाने की ठान ली, उस दिन से कोई काम भी बेहतर नहीं हुआ। साए मैं किसी और के इतना भी न रहो, अंकुर कोई बरगद के बराबर नहीं हुआ।
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